Friday, November 25, 2011

स्वयं की पहचान ही उसकी पहचान है

लोग कहते हैं--------

कहाँ है भगवान?

कैसा है भगवन?

किसका है भगवन?

सबका एक या सबका अगल – अलग है भगवन?

मैं समझता हूँ , आज लोगों के मन में जितनें प्रश्न भगवन के संबंध में हैं उतनें प्रश्न किसी अन्य बिषय पर नहीं ,, क्या कारण है कि प्रभु के ऊपर भी मनुष्य प्रश्नवाचक चिन्ह लगा दिया है ? मनुष्य प्रभु को भी आजाद नहीं रखना चाहता ; कोई उसे मंदिरों में , कोई उसे गिरिजा घरों में और कोई मस्जिदों में क्यों बंद करना चाहता है ? सपूर्ण ब्रह्माण्ड का रचयीता को भी मनुष्य पिजडे में क्यों बंद करना चाहता है ? जरुर कोई कारण तो होगा ही ?

मनुष्य परमात्मा के सम्बन्ध में तो प्रश्नों का तंत्र बना रखा है …...

मनुष्य स्वयं के सबंध में प्रश्न रहित रहता है …..

इन दो बातों से क्या ऐसा नहीं दिखता कि मनुष्य अपनीं पीठ की ओर चल रहा …

मनुष्य का मुख तो है किसी ओर और उसकी गति है किसी ओर … .

आप कभी उलटा चल कर देखना , बहुत कठिन होता है , उल्टा चलना अर्थात प्रभु की तरफ पीठ करना / एक तरफ हम प्रभु की शरण प्राप्ति की कोशीश में दिखते हैं और दूसरी ओर अपनी पीठ उसकी और रखते हैं . क्यों हम अपना मुह प्रभु की ओर नहीं रहना चाहते ? क्योंकि हम क्या कर रहे हैं उसके प्रति हम स्वयं बोध रहित हैं और अचेतन स्थिति में किया गया कार्य फल रहित बृक्ष कि तरह होता है जहां तनहाई के अलावा और कुछ नहीं रहता //

आप और हम जबतक प्रभु की आँखों में नहीं झाकनें का प्रयत्नं करते तबतक हमें - आप को तनहाई , सागर में ही डूबे रहना है और डूब हुआ मनुष्य कैसा होगा इसकी खोज को मैं आप पर छोडता हूँ //

मैं तो इतना कह सकता हूँ कि -----

स्वयं की तलाश ही प्रभु की तलाश है//

=====ओम्======


Friday, November 18, 2011

आप की उम्र क्या है

क्या कारण है कि मनुष्य के जीवन में चालीस साल तक की उम्र अपनी

एक अलग जगह रखती है?

अब आप देखना ….

जयशंकर प्रसाद कामायनी की रचना लगभग चालीस साल की उम्र में की

तुलसीदास जी चालीस साल की उम्र में रामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की

बुद्ध को चालीस साल की उम्र में परम सत्य दिखा

महाबीर को चालीस साल की उम्र में संसार एक भ्रम सा दिखनें लगा

आदि गुर ु नानकजी साहिब को तीस साल की उम्र में बोध हुआ

रामकृष्ण परम हंश को परम सत्य का बोध हुआ जब वे अभीं 15 साल के भी नहीं हुए थे

आदि शंकराचार्य का जीवन ही चालीस साल से भी कम का रहा है

मीरा,रहीम को बाल कृष्ण सर्वत्र दिखानें लगे जब उनकी उम्र अभीं प्रौढा अवस्था में भी नहीं पहुंची थी रमण महर्षि एवं चैतन्य महा प्रभु को बोध हुआ जब उनकी उम्र तीस स्साल के आस पास रही होगी अलबर्ट आइन्स्टाइन को42साल की उम्र में नोबल पुरष्कार उस बिषय पर मिला जिसको वे अपनी21साल की उम्र में अनुभव की थी/

यदि आप नोबल पुरष्कार विजेताओं को देखें तो आप को ताजुब होगा की लगभग 85% लोगों को

उन – उन बिषयों पर पुरष्कार मिला है जो उनके प्रारंभिक बिषय थे अर्थात जिनके बारे में उनको सोच प्रारंभ हुयी थी लगभग 15 – 25 साल की उम्र में और उसका परिणाम मिला उनको लगभग 35 साल की उम्र से 70 साल की उम्र के मध्य जा कर /

विश्व के अति माने जानें वाले मनोवैज्ञानिक Jung कहते हैं , शायद ही कोई ऐसा मिले जिसकी उम्र चालीस साल पार कर रही हो और उसके दिमाक में परमात्मा की सोच न हो ; जुंग का परमात्मा कौन है ? जुंग का परमात्मा परम सत्य है , वह परम सत्य जो संसार को चला रहा है /

आप की उम्र क्या है?ज़रा विचार करना और अपने को देखनें का प्रयाश पकरना क्या पता--- ?


======ओम्======




Wednesday, November 16, 2011

एक निगाह इधर भी

मां की गोदी----

पिता की उंगलियां-----

पत्नी का प्यार------

पुत्र – पुत्री के बड़े होने का इन्तजार----

और फिर … ..

पौत्र – पौत्री के बड़े होनें का इन्तजार----

यह है भ्रान्ति से भरी हुयी भोग आधारित सोच जिसके सहारे मनुष्य का जीवन परम के प्रकाश में भ्रान्ति के अँधेरे में न जानें कब , कैसे और कहाँ समाप्त हो जाता है ? इधर देह चलनें से इनकार करता है और गिर जाता है और उधर मन तडपता हुआ आत्मा के साथ उड़नें लगता है , खोजनेंलगता है किसी और नये देह को जिससे वह , वह कर सके जो अभीं नहीं कर पाया था या जिसको किया तो था लेकिन तृप्तता न मिल सकी थी / कैसा है यह भ्रान्ति का जीवन ? भ्रान्ति शब्द आप को उचित नहीं लग रहा है लेकिन मैं और कोई शब्द पाता भी तो नहीं ; भ्रान्ति की परिभाषा है – वहाँ जहां अनुमान अनुमान नहीं रह जाता अपितु अनुमान कर्ता को पूर्ण विश्वाश हो जाता है कि अमुक ऐसा ही है और जहां अनुमान अनुमान रहता है उसे संदेह कहते हैं / देखा आपनें जीवन का यह भोग आधारित समीकरण जहां सत्य के प्रकाश को असत्य का अन्धेरा कैसे घेर रखा है ? पुत्र के रूप में मां - पिता के सहारे की सोच में हमारा बचपन निकल गया , जवानी पत्नी ई सोच में गुजर गया और पता भी न चल पाया और जब बच्चे पहले चाचा फिर तौ फिर दादा कहने लगे तो विश्वास ही नहीं होता कि हमारी उम्र यहाँ पहुँच चुकी है और अंततः सभीं सहारे बेसहारे हो जाते हैं और , और सहारे की सोच के लिए वक्त भी नहीं रह जाता और इधर श्वास रुक - रुक के चलने लगाती है और वह घडी आ ही जाती है जब -----

कहाँ

कैसे

और कब यह श्वास रुक जाती है,कुछ नहीं पता लग पाता

यह है हम सब के जीवन की एक झलक


======ओम्=======


Tuesday, November 15, 2011

वासना से प्यार की यात्रा

कौन किसका कितना और कबतक अपना है ?

प्यार और वासना

सुरक्षा और भय

यह दो कड़ियाँ ऎसी हैं जिनका सीधे सभीं जीवों के जीवन से गहरा सम्बन्ध है / मनुष्य मात्र एक ऐसा जीव है जो द्वैत्य के माध्यम से अद्वैत्य की हवा को पहचान सकता है और अन्य जीव गुणों के प्रभाव से परे कभीं नहीं पहुच सकते ; उनका जीवन स्टीरियो टाइप है अर्थात जन्म , भोजन , काम , सुरक्षा एवं मृत्यु इनके मध्य सीधी रेखा में उनका जीवन आगे चलता रहता है / मनुष्य के जीवन के दो केंद्र हैं [ bipolar life ] एक केन्द्र है राम और दूसरा केंद्र है काम ; राम केंद्र का मार्ग है प्यार और काम का मार्ग है वासना / मनुष्य वासना से प्यार में पहुँच कर अपने को धन्य समझता है और प्रभु की कुशबू ले कर समाधि में पहुँच कर परम धाम को देखनें लगता है और वासना में उलझा मनुष्य वासना के फल स्वरुप पैदा होता है , वासना की खोज में उसका जीवन गुजर जाता है और वासना की अतृप्त में उसे न चाहते हुए भी शरीर छोड़ना पड़ता है /

मनुष्य प्यार के लिए परिवार की रचना करता है , पत्नी - बच्चों में उसे वासना में निर्विकार प्यार की झलक मिलती रहती है और वह आगे चलता चला जाता है लेकिन वह होती तो वासना ही है , वह वासना के सम्मोहन में आगे चलता रहता है लेकिन जिस दिन बुद्ध – महाबीर जैसे वाशना में होश उठता है उस दिन वह वासना को धन्यबाद करके चल पड़ता है सत् पथ पर जहां जो होता है वह सत् ही होता है / मनुष्य सुरक्षा के लिए महल बनवाता है , धन इकट्ठा करता है लेकिन क्या उसे कभी यह मह्शूश हो पाता है कि अब वह पूर्ण सुरक्षित है ? जी नहीं / साधनों से सुरक्षित कैसे हो सकता है ? साधन जैसे - जैसे बढते जाते हैं मनुष्य और अधिक अशुरक्षित महशूश करनें लगता है / पूर्ण सुरक्षा तब महशूश होती जय जब मन पूर्ण शांत हो और उस परम पर टिका हो जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का सुरक्षा चक्र है / सब कहनें की बाते हैं , अमुक मेरा बेटा है , अमुक मेरी पत्नी है , अमुक मेरा पिता है अमुक मेरी मां है कोई किसी का नहीं सब अपनें - अपने स्वार्थ में डूबे हैं लेकिन इनसे नफरत करना अपने को नर्क में डालना है , ये सभीं सीढियां है सबको एक - एक करके समझते रहो और अंत में जहां तुम्हारी यह होश ले जायेगी वही परम प्रभु पा आयाम होगा जहां परमानंद बसता है //

काम से राम की यात्रा मनुष्य के जीवन की यात्रा है

काम से काम में स्थिर अन्य जीवों के जीवन की गोलाकार यात्रा है

मनुष्य कभी हसता है तो कभी रोता है जो बाहर से स्पष्ट दिखता है

अन्य जीव जब रोते हैं या हस्ते हैं तब मनुष्य को पता भी नहीं चल पाता

मनुष्य नशे में रहता है उसे दूसरों का रोना देख हस्त है और हसता देख कर क्रोध करता है लेकिन यह पूर्ण भोगी मनुष्य के लक्षण हैं जो इनको समझा वह गया उस पार


======ओम्========


Sunday, November 13, 2011

इसे भी देखो और समझो

जिससे आप कभीं मिले नहीं

जिसको आप कभीं सुने नहीं

जिसको आप कभीं देखे नहीं

उसकी मात्र फोटो देख कर आप उसे अपना बना लेते हैं या उससे नफरत करनें लग जाते हैं आखिर ऐसा क्यों होता है?आप किसी की तस्बीर देख कर,किसी की मूर्ती देख कर उससे या तो दूर हो जाते हैं या उसे अपना लेते हैं,ऐसा क्यों होता है?क्या कभीं आप इस बिषय पर सोचे हैं?

एक महान मनोवैज्ञानिक का कहना है कि हम किसी को ठीक वैसा समझते हैं जैसा उसे हमारा मन देखता है,मन के पास ऐसा कौन सा साधन है कि वह समझ जाता है कि अमुक अच्छा है और अमुक खराब है?

जब हम किसी की मूर्ती या तस्बीर देखते हैं और इस निर्णय पर पहुँच जाते हैं कि वह ठीक है या खराब;इस रहस्य में बहुत गहरा विज्ञान छिपा है आइये देखते हैं इसे-------

सभीं मूर्तियों एवं तस्बीरों में एक ऊर्जा होती है बिना ऊर्जा कोई भी सूचना नहीं होती और उसकी अपनी ऊर्जा के साथ उसमें बनानें वाले की भी ऊर्जा आ जाती है/जब हम उसे देखते हैं तब-----

हमारे अंदर की ऊर्जा जिसका केंद्र मन होता है उस तस्बीर की ऊर्जा को पकडती है और-----

[]जब दोनों उर्जायें एक सी होती हैं तब हमारा मन उसे स्वीकार कर लेता है और …...

[]जब दोनों की आबृति एवं दिशा भिन्न – भिन्न होती हैं तब हमारे मन की ऊर्जा उसे अस्वीकार कर देती है,इस विज्ञान को टेलीपैथी कहते हैं/प्राचीन काल में इस विज्ञान का बहुत चलन था लेकिन अब लुप्त सा हो चला है//


=====ओम्======


Friday, November 11, 2011

इसे भी समझो

मनुष्य कहाँ-कहाँ नहीं देखता?

क्या अपनें को देखता है?

क्या उसका अगला पैर जहां पड़नें वाला होता है उसे देखता है?

क्या पेड़ – पौधों के अंकुरण को देखता है?

क्या उदित हो रहे सूर्य को देखता है?

क्या अस्त हो रहे सूर्य को देखता है?

क्या अपने बेटो/बेटी को देखता है कि वे कैसे आगे बढ़ रहे हैं?

क्या अपनें परिवार की सच्चाई को देखता है?

इस प्रकार ढेर सारे प्रश्न हैं जो असत्य के जीवन में सत्य की किरण दिखा सकते हैं लेकिन देखनें वाला दिल होना चाहिए / कोई नहीं चाहता खासकर अपने सम्बन्ध में सत्य को देखना लेकिन बिना सत्य को देखे उसे कैसे पता चलेगा कि वह किधर जा रहा है और उसे किधर जाना था ? एक छोटा सा बीज मिटटी में डाल कर देखना कभीं जब प्रकृति को नजदीक से देखना हो / बीज में एक बिंदु से दो बाहर निकलते हैं एक से तना बनता है और दूसरा जड़ का तंत्र निर्माण करता है ; एक आकाश को छूना चाहता है और दूसरा पृथ्वी की गहराई को मापना चाहता है . एक सूर्य को छूना चाहता है और एक जमीन के अंदर छिपे अन्धकार की गहराई को मापना चाहता है , एक सूर्य की तपस को पीता है और दूसरा जमीन के अंदर शीतल पानी की तलाश करता है , दोनों की दिशा अलग – अलग हैं , दोनों की सोच अलग – अलग हैं लेकिन दोनों का केंद्र एक होता है , बीज के अंदर एक ऎसी बिंदु होती है जो उन दोनों की मन होती हैं वहाँ दोनों एक से रहते हैं लेकिन मनुष्य क्यों ऐसे नहीं रह सकता ? हम क्यों चाहते हैं दूसरे को गुलाम बन कर रखना ? हमें कब होश आयेगी ? आप भी इस बात आर सोचना और मैं भी सोचूंगा //


=====ओम्======


Sunday, November 6, 2011

हम क्यों सिकुड़े से रहते हैं

क्या हमें भर पेट भोजन नहीं मिल रहा?

क्या हमें तन ढकने को वस्त्र की कमी है?

क्या सर ढकने को झोपडा नही है?

क्या बेटा वैसा न बन सका जैसा हम चाहते थे?

क्या पत्नी आप के इशारे पर नहीं चलती?

क्या जहां रहते हैं उस बस्ती का मोहौल ठीक नहीं?

आखिर कोई तो कारण होगा कि हम सिकुड़े से क्यों रहते हैं?

सुबह – सुबह सूरज निकल रहा है,सभीं पशु-पंछी खुशी-खुशी अपनें अपनें काम पर जा रहे हैं और एक हम हैं घर के एक कोनें में या घर से कुछ दूरी पर एकांत में बैठ कर बीडी से अपना कलेजा फूँक रहे हैं,आखीर वह क्या कारण हैं कि जीवों का सम्राट होते हुए भी हम चोर की तरफ एकांत में बैठ कर बीडी फूक रहे हैं,ऎसी कौन सी बात है?

एक काम करना होगा यदि हमें / आपको इस मर्ज की दवा चाहिए तो / सुबह – सुबह उठते ही अपनें पास एक कोरा कागज़ का टुकड़ा और एक पेन रखनी होगी / कागज़ – पेन को अपनी जेब में हर पल रखे रहें जबतक रात्रि में सोनें न जा रहे हों तब तक / बारह घंटों में जब भी आप दुखी हों या क्रोध के शिकार बनें उस की वजह को कागज़ पर लिख लें / इस बारह घंटों में आप का कागज़ भर जाएगा और जब रात्रि में सोनें जाए तब इस कागज को स्थिर मन से पढ़ें , आप पायेंगे कि आप को दुःख तब आता है या क्रोध तब आता है

जब -----

आप के अहंकार पर कोई चोट मारा होता है …..

जब आप की कामना खंडित होती दिखती है ….

मिल गयी वह बूटी जो मेरे / आपके मर्ज की दवा है , क्या है वह बूटी ?

कामना एवं अहंकार की छाया में रहना बंद करो

और

चैन से रहो,सम्राट की तरह जैसा

परमात्मा बना कर भेजा है//


=====ओम्=======



Wednesday, November 2, 2011

हवा का रुख


पुरुष का ज्यादा समय घर से बाहर गुजरता था


और


स्त्री का ज्यादा वक्त घर में ही गुजरता था


लेकिन


समय बदला , समय से साथ – साथ हवा का रुख बदला


और इस बदलाव में सबकुछ तो बदल गया //


पहले हवा पूर्व से पश्चिम की ओर बहती थी और अब पश्चिम से पूर्व की ओर चल पडी है / इस हवा के प्रभाव में हम सबका खान – पान , रहन – सहन , उठना - बैठना , पहनावा , भाषा और चाल सब कुछ तो बदल रहा है और है कोई जरुर कहीं न कहीं जो इस बदलाव को गहराई से निहार रहा है /


आज से बीस साल पहले कोई सोच भी न सकता रहा होगा कि स्त्रियों के सैलून होते होंगे और आज खोजना पड़ता है आदमी को अपनें सैलून को ; जहाँ देखो वहीं स्त्रियों के सैलून हैं , कहीं कहीं गरीब बस्तियों में एकाध सड़े - गले देखनें में ऐसे दिखते जैसे कोई ऐतिहासिक जगह हों , एकाध पुरुषों के सैलून भी दिख जाते हैं /


आज दूर से किसी बाइक चालक को देख कर यह कहना की यह चालक स्त्री है या पुरुष कुछ कठिन होगा , सब एक से दिखते हैं / आदमी का अधिकाँश समय घर से बाहर दो कारणों से गुजरता था ; एक घर को चलाने के साधनों का बंदोबस्त करना उनकी प्राथमिकता होती थी और इस कार्य में औरों के सहयोग की भी जरुरत होती थी, यही जरुरत समाज को जोड़ कर रखती थी और दूसरा करण था , पुरुष घर की परेशानियों से लड़ा हुआ अपने को अब और चलाना जब मुश्किल समझनें लगता था तब घर से बाहर निकल पड़ता था और ऐसे की तलाश में घूमता था जो उसको अपनी न सुना कर उसकी सुन सके लेकिन यह समीकरण किसी - किसी का सही बैठता था ज्यादातर लोग बाहर जा कर अपनें बोझ को और बढ़ा कर वापिस आते थे और उनका नज़ला घर के जिस सदस्य पर अधीन गिरता था वह होती थी उनकी पत्नीजी /


कहते हैं न --- जाति रहे हरि भजन को , ओटन लगे कपास , गए तो थे घर से बाहर कुछ हलके होनें लेकिन अपना वजन और अधिक बढा कर वापिस आगये / क्या करोगे गीता पढ़ के , क्या करोगे रामायण पढ़ के , यदि पढ़ना ही चाहते हो तो -------


हरपल अपनें को पढ़ो


अपनें को देखो


====== ओम् ======


Saturday, October 29, 2011

समयातीत समय को कैसा समझता होगा


घडी की खोज भारत की नहीं


भारत किसी भी खोज में रूचि नहीं दिखाई


भारत मात्र एक की खोज करता रहा जो आज भी खोज का बिषय बना हुआ है


भारत जिसकी खोज कर रहा था आज पश्चिम भी उसकी खोजमें जुटा हुआ है


भारत उस परम की खोज में सब कुछ खो दिया


भारत सब कुछ खो कर भी खुश है लेकिन जिनके पास सबकुछ है वे ---- ?


वे भारत की ओर झांकते रहते हैं , आखिर क्यों ?


आज शायद ही कोई ऐसा मिले जिसके पास किसी न किसी रूप में घडी न हो


सभीं मोबाइल में घडी है


यदि कोई किसी ऐसे लोक से आये जहां के लोग घडी को जानते तो हों लेकिन अभीं देखा न हो तो यहाँ के लोगों का घडी के प्रति लगाव को देख कर उनको कैसा लगेगा?उनके दिमाक में कुछ ऎसी बात आयेगी कि देखते हैं यहाँ के लोगों को और यह भी देखते हैं की ये लोग कितनें समय के पावंद हैं?


अब आप सोचो----


आप कितनें समय के पावंद हैं ?


यहाँ के लोग समय के कितनें पावंद हैं ?


बस अड्डों पर, रेलवे स्टेसनों पर एवं एयर पोर्टों पर जगह – जगह घडीयाँ लटकती आप देख सकते हैं लेकिन वहाँ जो बस, रेलवे और वायुयान चलते हैं वे समय के कितनें पावंद हैं?




घडी की खोज करनेवाला किस मनोविज्ञान का रहा होगा ?


वह जिसका मन एवं बुद्धि पूर्ण रूप से अस्थिर रहा होगा , वह घडी का निर्माण किया होगा /


वह जिसको ब्लड – प्रेसर का मर्ज रहा होगा , वह घडी बनाया होगा /


वह जिसकी उम्र बहुत कम रही होगी वह घडी बनाया होगा /


घडी बनानें वाला कभीं भी स्थिर मन वाला नही हो सकता /


शिवपुरी बाबा महारानी विक्टोरिया के यहाँ इंग्लैंड में मेहमान थे,जार्ज बर्नार्ड शा भी उनसे मिलनें वहा आये थे/शिवपुरी बाबा एक घंटे बाद आये और लोग उनका अभिवादन किया/जार्ज बाबा से पहला प्रश्न पूछा,क्या कारण है की साधू-महात्मा समय के पावंद नहीं होते?बाबा बोले,हो सकता है,लेकिन इस बात को जो आप कह रहे हैं उसे वह समझता होगा जो समय का गुलाम होता होगा लेकिन वह जो समयातीत में रहता है उसे क्या पता कब रात हुयी और कब दिन हुआ?




=====ओम्=======




Tuesday, October 25, 2011

क्या अब्यक्त अमावस्या जैसा ही है

दीपों का त्यौहार आखिर आ ही गया

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की सभीं सूचनाओं में परम ऊर्जा का संचार हो,मैं तो प्रभु से यही मांगता हूँ/

कहते हैं , भगवान महाबीर एक ऐसे महान आत्मा हैं जो अमावस्या के दिन पैदा हुए , अमावस्या को उनको ज्ञान मिला और अमावस्या को वे अपना शरीर त्यागे अर्थात महाबीर का सबकुछ अँधेरे में घटित हुआ और इनके बिपरीत बुद्ध का जन्म हुआ पूर्णिमा की रात में ज्ञान की प्राप्ति हुयी पूर्णिमा की रात में और अपना शरीर त्यागा पूर्णिमा की रात में / महाबीर और बुद्ध लगभग समकालीन थे , लगभग इन दोनों का कार्य – क्षेत्र भी काशी से नालंदा के मध्य रहा लेकिन दोनों दो नदियों की भांति समानांतर बहते रहे कभी उनमें टकराव न हुआ /

दीपावली पांच रातों का त्यौहार है,कुछ इस प्रकार-------

पहला दिन – धन त्रयोदसी

दूसरा दिन – नरकासुर चतुर्दसी

तीसरा दिन – अमावस्या , लक्ष्मी पूजन [ मुख्य रात ]

चौथा दिन – एक्कम , गोबर्धन पूजा

पांचवा दिन – यम द्वितीया

दीपावली हार साल हम मनाते हैं क्या कभी कोई ऎसी बात भी हमारे अंदर उठती है जो तन , मन एवं ह्रदय में एक अलग उर्जा का प्रवाह उत्पन्न करती हो ? जी नहीं , त्यौहार आते हैं और जाते हैं और हम मुर्दे की भांति पड़े रहते हैं / त्यौहार क्या करेंगे ? यहाँ तो स्वयं अवतार लेते हैं प्रभु , फिर भी हम जैसे हैं वैसे ही बनें रहते हैं / श्री राम समुद्र पार तक की यात्रा किये और रावण को मारा लेकन उनके साथ कितने मनुष्य थे ? कहते हैं , मनुष्य का मष्तिष्क पशु - पंछी के मष्तिष्क से अधिक विकसित होता है लेकिनत्रेता - युग में श्री राम को पहचाननें वाले इन्शान न थे , पशु - पंछी ही थे /

धन त्रयोदसी धन पूजन के लिए है , नरकासुर चतुर्दसी श्री कृष्ण - नरकासुर के युद्ध की याद दिलाती है , अमावस्या महाबीर के तप की स्मृति को ताजी करती है औरगोबर्धन पूजा में इन्द्र का अहंकार किस प्रकार पीघल कर श्रद्धा में रूपांतरित हुआ , इस बात कि याद दिलाती हैऔर आखिरी है यम द्वितीया जो यह याद दिलाता है कि चाहे जो भी करो लेकिन एक दिन यम के पास तो जाना ही होगा //

अमावस्या के बात पूर्णिमा भी आती है

रात के बाद दिन भी आता है

दुःख के बाद सुख भी आता ही है

फिर क्या घबडाना , जो आया उसे स्वीकारो और जो आनें वाला है उसे आनें दो //

All informations are in time- space four dimensional frame where time coordinate indicates the various changes and every one should be conscious enough to understand the ULTIMATE REALITY .


====== ओम् =====


Friday, October 21, 2011

इसे भी समझो



प्रोफ़ेसर आइन्स्टाइन का कहना है------



बहुत कम लोग ऐसे हैं जो अपनी इंद्रियों से देखी गयी घटना या बस्तु को अपनें दिल से समझते हैं /







  • सभीं लोग नंबर एक अपनें को समझते हैं बिना कुछ किये/





  • बहुत कम लोग नंबर एक बननें के लिए कोशीश करते हैं/





  • पीछे घूम – घूम कर देखनें वाला कभीं नंबर एक नहीं आ सकता





  • नंबर एक वह नहीं होता है जो लोगों की नक़ल करके अपनें को नम्बर एक समझता हो/





  • नंबर एक रहनें वाला कभीं यह सोच कर आगे कदम नहीं बढाता कि लोग क्या कहेंगे/





  • नंबर एक वह होता है जो जो कर रहा होता है उसमें उसकी पूरी श्रद्धा-लगन होती है/





  • नंबर एक के साथ रहनें से ऐसा लगनें लगता है कि यह ब्यक्ति स्वयं तो कुछ करता नहीं,लगता है कि जैसे कोई शक्ति इससे यह सब करा रही हो /





  • नंबर एक वह होता है जिसकी नज़र किसी और पर नहीं अपनी ऊपर होती है/





  • नबर एक कभीं परवाह नहीं करता कि लोग उसके बारे में क्या कह रहे हैं/



Prof. Einstein की जब Theory of relativity विज्ञान जगत के सामनें आयी तब एक सौ लोग उनके बिरोध में खड़े हो गए और गणित को उनके खिलाफ ढालनें लगे , किसी पत्रकार नें उनसे पूछा , आप बोलते क्यों नहीं चुप क्यों रहते हैं , उनका जबाब क्यों नहीं देते ?



Einsteinकहते हैं--------



यदि मैं गलत हूँ तो सौ लोगों को इक्कठे होने की क्या जरुरत , एक ही काफी होता ? ऐसे लोग होते हैं जो नंबर एक होते हैं , देखिये इनके vision को , कितना पारदर्शी है ?







  • नंबर एक बननें की कोशीश करना,बुरा नहीं,कोशीश सब को करनी ही चाहिए लेकिन-----





  • किसी की टांग में अपनी टांग लड़ा कर किसी को नीचे नहीं गिराना चाहिए …...





  • नंबर एक बननें की कोशीश में कहीं अहंकार की छाया नहीं पड़नी चाहिए ….





  • कभीं कोई गहरी चाह नहीं ऎसी होनी चाहिए जिसके प्रभाव में मनुष्य इंसानियत को भूल बैठे



वह हर पल हर घडी नंबर एक है----



जिसकी मन-बुद्धि में प्रभु बसते हों






======= ओम्============





Monday, October 17, 2011

कुछ तो सोचो

कहते हैं-------

पारस अगर लोहे को छू दे तो वह लोहा लोहा नहीं रह जाता , सोना हो जाता है / पारस नाम के बहुत से लोग हैं लेकिन वह पारस पत्थर आज तक किसी को न मिला जो लोहे को सोनें में रूपांतरित कर देता है , आखिर यह बात आयी कहाँ से होगी ?

कहते हैं-----

अन्गुलीमाला एक खूंखार लुटेरा था जो बुद्ध को छूते ही स्वयं योगी बन गया था और एक हैं गीता के अर्जुन जिनको स्वयं प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं कि मैं प्रभु हूँ , तूं मुझे सार्पित हो जा , तेरा इसी में कल्याण है लेकिन अर्जुन यह भी नहीं कहते कि आप प्रभु नहीं हैं और उनकी शरण में आना भी नहीं चाहते और अर्जुन को समझानें में प्रभु को गीता में 574 श्लोकों को बोलते हैं पर इनका कोई असर अर्जुन पर अंत तक नहीं पड़ता /

एक बात------

पारस लोहे को तो सोना बना देता है लेकिन अगर उसके पास एक टोकरा गोबर रख दिया जाए तो क्या गोबर भी सोना बन जायेगा ? हीं पारस केवल लोहे को सोना बनाता है / लोग कहते हैं , अमुक योगी बहुत प्रभावी है लेकिन मुझे तो कोई असर पड़ा नहीं , मैं कैसे कह दूं कि वह बहुत प्रभावी है ? लोग आये दिन गुर ु बदल रहे हैं कभीं ऋषि राज तो कभीं परमानंद , आये दिन नये - नये धर्म गुरु दिखनें लगे हैं जैसे धर्म गुरुओं की बारिश हो गयी हो / आज आप जहाँ जाएँ , जिस धर्म से जुडी संस्था में जाएँ लंबी - लंबी कतारें लगी हैं लोगों की , लागत है इस पृथ्वी पर अब संभवतः सर्वत्र धर्म ही धर्म है लेकिन क्या ऐसा है भी ? बहुत ही गंभीर बात है कि अब भारत में अमेरिका से धर्म गुरु आ रहे

हैं , लोगों को देसी धर्म गुरु अब नहीं भा रहे , हैं न मजे की बात ?

आप जहां भी दिल आये वहाँ जाएँ लेकिन इतनी सी बात को अपनीं बुद्धि के किसी कार्नर में जरुर रख लें कि ------------------

यह तो पता नहीं की आप जहां जिस गुरु के पास जा रहे हैं वह पारस है या नहीं लेकिन आप यह तो देख ही सकते हैं कि--------------

आप क्या लोहा है या फिर …......

गोबर गणेश हैं//

दूसरों को हम परखना चाहते हैं लेकिन स्वयं को ?



============ओम्===========


Thursday, October 13, 2011

मौत क्या है

यात्रा- 01

रुकनें में कोई खुशी नहीं

जानें का गम होता है नहीं

मन कहता फिर कहाँ चले ?

मैं कहता जहां कोई नहीं / / रहनें में … ...


कहीं दूर गगन में बस लेंगे

अब यहाँ तो रहना मुश्किल है

अपनों के संग तो रह ही लिए

अब उसके संग भी रहना है // कहीं दूर … ...





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यात्रा- 02


साधना के बारह मूल मन्त्र


  • सत्य की अनुभूति उस से हमें नहीं हो सकती जो हमारे पास है जैसे तन,मन एवं बुद्धि//

  • सत्य तब दिखनें लगता है जब तन मन एवं बुद्धि की उर्जा रूपांतरित होजाती है//


  • लोगों को तो खूब देखा अब अपनें को भी कुछ घडी देखते हैं//

  • अभीं तक परायों को अपना बना रखा था अब दिखा कि वे सभीं पराये थे//

  • कामना टूटनें पर क्रोध एवं दुःख दो में से कोई एक होता है//

  • जितनी गहरी कामना होगी उतना गहरा दुःख या क्रोध होगा,उसके टूटनें से//

  • दुःख मिले या सुख जो भी मिले उसे प्रभु का प्रसाद समझ कर अपनी झोल में रखो//

  • दुःख की साधना से सीधे प्रभु मिलता है और सुख की साधना अति कठीन साधना होती है//

  • हम जिसको सुख कहते हैं वह ऐसा फल होता है जिसका बीज दुःख होता है//

  • हम सुख – दुःख शब्दों में भ्रमित रहते हैं,ऐसा क्यों?

  • भ्रम अज्ञान की छाया होता है और अज्ञान गुण तत्त्वों के प्रभाव से उपजता है//

  • दुःख की यात्रा वहाँ पहुंचाती है जहां करूणानिधि रहते हैं//




======= ओम =======




यात्रा- 03

वे धन्य हैं जिनका ह्रदय प्रभु से परिपूर्ण है

वे धन्य हैं जिनके दिल में जो है वह सब प्रभु का ही है

वे धन्य हैं जिनको यहाँ कोई नहीं पहचानता

लेकिन ऐसे दिर्लभ को------

वह पहचानता है जो सबका मालिक है//



जो औरों को समझता है वह बुद्धिमान कहला सकता है

और

जो स्वयं को समझता है वह ज्ञानी होता है//


बुद्धि स्तर की समझ में संदेह की पूरी गुंजाइश होती है

लेकिन

ज्ञान से उपजी समझ में संदेह के लिए कोई जगह नहीं होती//




जीवन में मौत के अनुभव के लिए बहुत से मौके मिलते हैं

लेकिन

बहुत कम लोग ऐसे मौकों को समझ पाते हैं//



जन्म का अनुभव तो कहीं स्मृति में दबा हुआ है जिसको हम नहीं जानते और जीवन का दूसरा किनारा है मौत का जो कब आयेगी,कहाँ आएगी और कैसे आयेगी आज तक कोई नहीं जान पाया चाहे वह बुद्ध पुरुष रहा हो या पूर्ण भोगी/जीवन में बहुत बार हम ऐसे अनुभवों से गुजरते हैं जो मूत के अनुभव से ज्यादा दूर के नहीं होते लेकिन ऐसे अनुभवों के समय हम भय में होनें के नाते उनको समझ नहीं पाते और यह हमारी भूल हमें चैन से मरनें नहीं देती//




प्रभु के दरबार में कुछ छिपा न पाओगे और वहाँ कोई तुमसे पूछेगा भी नहीं कि ऐसा क्यों किया?



जीवन में भागते रहना लगभग सब का स्वभाव बन गया है,जो भाग रहे हैं उनमें शायद ही कोई यह समझता हो की वह क्यों भाग रहा है और जी घडी यह सोच उठती है उसी घडी भाग का अंत आ जाता है/हम भाग रहे हैं औरों को समझनें के लिए और समझ नहीं पाते जो समझते हैं वह आगे चल कर झूठा निकलता है और तब बहुत दुःख होता है/जितना श्रम हम करते हैं औरों को समझनें ले लिए उसका एक अंश मात्र भी यदि हम स्वयं को समझनें में श्रम करें तो हमस्वयं को समझ सकते हैं और जो स्वयं को समझता है वह प्रभु को भी समझता है/


यात्रा- 04


क्या आप जानते हैं-------------

  • मीरा20साल की थी जब कबीरजी साहिब देह त्याग गए

  • नानकजी साहिब जब पैदा हुए उस समय कबीरजी साहिब29साल के थे

  • नानक जी साहिब के जन्म से ठीक19साल बाद रवि दासजी साहिब का जन्म हुआ

  • नानक जी के देह छोडनें के08साल बादमीरा देह को त्यागा

  • मीरा के देह त्याग केएक साल बाद रसखान जी का आना हुआ

आज मनुष्य के मनोविज्ञान में नकारात्मन ऊर्जा बह रही है;जो है उसे गलत बनाओ और जो नहीं है उसका स्वप्न देखो/जो सरकार है वह निकम्मी है,जो नहीं है वह प्यारी होगी लेकिन जिस घडी वह आती है उसी घडी से उसकी कब्र हम खोदनें लगते हैं और किसी न कीसी तरह हम सब मिला कर उसे जीते जी कब्र में ढकेलदेते हैं,शुक्र है कि ऊपर मिटटी डालना भूल जाते हैं और वही सर्कार पुनः कुछ समय भाद आ जाती है और यह क्रम सम्पूर्ण संसार में चल रहा है/





यात्रा- 05



रिक्त मन प्रभु को बसाता है

रिक्त मन मंदिर है

रिक्त मन में परम कमल खिलता है

रिक्त मन स्वयं का असली रूप दिखाता है



यात्रा- 06


एक गाँव में एक बूढा अकेले एक झोपड़े में रहता था,कई दिनों से वह बाहर न दिखा तब बस्ती के लोग उसके झोपड़े में पहुंचे और देखा कि वह तो बिचारा बीमार था और था अकेला/सभीं लोग उसकी मदद करना चाहते थे,कोई पानी की गिलास ले कर आगे आता तो कोई अपनें घर से भोजन ले कर आया लेकिन वह कुछ खाया-पीया नहीं बश लोगों को हाँथ जोड़ कर अभिवादन जरुर किया और धीरे से बोला, “आप लोग कुछ समय के लिए बाहर जाएँ एक हमारे खास मेहमान आये हैं जिनका मैं इन्तजार कर रहा था,फिर आप लोग आ जाना,यह झोपडा तो आप सबका ही है" /सभीं लोग एक दूसरे को देखते हुए एक के बाद एक बाहर जानें लगे और चंद मिनटों में झोपडा खाली हो गया/बाहर रहे होंगे लगभग10 – 12लोग,सभीं आपस में बातें कर रहे थे कि भाई वह खास ब्यक्ति कौन हो सकता है,अब तो अंदर कोई दिखता भी नहीं?गाँव के मुखिया जी बोले,पिछले पचास साल से मैं देख रहा हूँ,आज तक तो कोई आया नहीं लेकिन ताजुब की बात है,आखिर वह खास ब्यक्ति कौन हो सकता है?जो लोग बाहर थे उनमें से एक आदमी झोपसे से कान लगा कर अंदर की आवाज को सुन रहा था/अंदर से आवाज आ रही थी जैसे कोई दो लोग धीरे-धीरे बातें कर रहे हों,उस ब्यक्ति नें इशारा किया की चुप रहो,जिससे अंदर चल रही वार्ता को मैं ठीक से सुन सकूं/अब सबको यकींन हो गया,कोई न कोई अंदर जरुर है और सभीं चुप हो गए/झोपसे आ रही आवाज में उस बीमार ब्यक्ति के रो-रो कर बातें करनें की आवाज आ रही थी,वह रो-रो कर कह रहा था,तुम इतनें दिन लगा दिए आनें में मैं तो सालों से तेरा इन्तजार कर रहा था,मुझे यह नहीं मालूम था कि तुम इतनें निर्दयी हो,चलो अच्छा हुआ आ तो गए मैं तो सोच बैठा था कि तुम आओगे ही नहीं/धीरे-धीरे अंदर झोपड़े में उस बीमार ब्यक्ति की आ रही आवाज बंद हो गयी और लगभग दस मिनट तक जब कोई आवाज न आयी तो वह आदमी जो कान लगा कर अंदर की बात को सुन रहा था भाग कर प्रधान जी के पास आ कर बोला,प्रधान जी आप अंदर जाएँ अबतो आवाज भी आनी बंद हो गयी है और ऐसा लग रहा है,जैसे अंदर कोई है ही नहीं/प्रधानजी भागे-भागे अंदर गए और जोर से आवाज लगाईं,आ जाओ सभीं यह बूढा तो अब नहीं रहा/अंदर जा कर लोग देखे,वह बीमार नीचे जमीन पर पड़ा है और एक दम ठंढा हो चुका है/

अब आप सोचिये वह उसका खास मेहमान कौन रहा होगा जो उसके अखीरी क्षणों में उसके पास आया था और वह उसे पहचान कर बोला,अरे!तुम आगये? ,मैं तो कितनें दिनों से तेरा इन्तजार कर रहा था,चलो कोई बात नहीं जब आ ही गए हो तो तेरे साथ चलना ही होगा/वह कोई साकार न था वह थीमौत----------//

वह जो मृत्यु के समय मौत को देख कर उसे पहचान लेता है वह ब्यक्ति सीधे परमधाम पहुंचता है/


=====ओम्--------