Sunday, May 29, 2011

क्या भय भगवान की बुनियाँद है?


फ्रेडरिक नित्झे कहते हैं------

भगवान उन लोगों की खोज है जो -----

कमजोर हैं … ..

जो भयभीत हैं … ..

जो समस्यायों का सामना नहीं कर सकते /


बीसवीं शताब्दी के महान मनोवैज्ञानिक सी जी जुंग कहते हैं -------

मध्य उम्र के लोगों में ऐसे आदमी को खोजना कठिन कई जिसके मष्तिस्क में प्रभु की सोच की

ग्रंथि न होती हो /


अब आप सोचिये की आप किस श्रेणी के ब्यक्ति हैं?

क्या महाबीर , बुद्ध , रामकृष्ण परम हंस , चैतन्य महा प्रभु , आदि शंकाराचार्य जैसे लोग

भयभीत मानसिकता के थे ? महाबीर और बुद्ध के सामनें कौन सी मजबूरियाँ थी कि वे लोग

सत्य की खोज में महल त्याग दिए और भागते रहे जंगलों में ?

प्रोफ . आइन्स्टाइन एक बार नहीं लाखों बार प्रभु को याद किया है और जब उनके दिमाक मे यह बात आयी … .....

God does not play dice .

तब से अंत तक वे उस नियम की तलाश में गुजार दिया जिस नियम से प्रभु इस ब्रह्माण्ड की रचना

किये हैं / वह कौन सा नियम है जो प्रकृति को बनाए हुए है ? - यह खोज थी आइन्स्टाइन की लेकिन

पूरी न हो सकी /

राम , कृष्ण , क्राइस्ट , मोहमद साहिब तथा अन्य पैगम्बर , पीर – फकीर जो भी आये सब

फेल हो कर गए हैं , यहाँ आजतक कोई पास नहीं हुआ , पता नहीं क्या कारण है ?

गीता में प्रभु कहते हैं------

मोह – भय के साथ वैराज्ञ नहीं मिलता और बिना वैराज्ञ प्रभु की हवा नहीं लगती और

नित्झे कहते हैं … ...

भगवान शब्द भयभीत लोगों की देन है , अब आप सोचिये कि … ..

क्या आप के मन मे भी प्रभु के लिए कोई संदेह है ?



=====ओम=======




Wednesday, May 25, 2011


किधर चले ?




जब जिंदगी तम में डूबती स्वयं को दिख रही हो …...


दुःख के घनें बादलों से दर्द की बूंदे टपक रहीं हों …...


जब रह – रह कर जिंदगी के आखिरी किनारे कि झलक मिलती हो …..


जब सभीं अपनें पराये बन चुके हों …...


तब …..


एक अब्यक्त भाव की लहर दौड़ती है , ह्रदय में …..


यह लहर आती तो है लेकिन हम बेहोशी में इसे पहचान नहीं पाते ….


जीवन भर जब बेहोशी भरा जीवन गुजरा हो …..


अंत समय में होश आये तो कैसे आये ?


ह्रदय की अब्यक्त भाव की लहर मिला सकती है …..


उस अब्यक्त से


जो परमानंद नाम से जाना जाता है …..


लेकिन ….


इस तम की बेला में ….


होश को पकड़ना पड़ता है //




====ओम======






Thursday, May 19, 2011

वह क्या चाहता है?


हम तो रात – दिन उस से मांगे जा रहे हैं

लेकिन

क्या कभीं यह भी सोचा

कि

वह हमसे क्या चाहता है?


बेटा मांगो,बेटी मिले

जीवन मांगो,मौत मिले

धन मांगो,निर्धनता मेले

लेकिन फिर भी हम उसे नहीं छोड़ना चाहते

आखिर क्यों?


क्या हम उस से भयभीत हैं?

या हम उस से प्यार करते हैं?


हमारा उस से क्या रिश्ता है कि

चाहे सुख हो या दुःख हम उसे याद जरुर करते हैं,

आखिर क्या कारण हो सकता है?


याद रखना

भय में किया गया प्यार,प्यार नहीं वासना होता है

हम स्वयं को तो धोखा देते ही हैं लेकिन उसे नहीं दे सकते

चाहे हम उसे भय बश याद करते हों लेकिन वह हमसे

प्यार करता ही है

जिस दिन

जिस घडी

तन,मन,बुद्धि की ऊर्जा का रुख बदला

पता चल जाएगा कि

वह केवल प्यार चाहता है


=========


Monday, May 16, 2011

कौन खीच रहा है पीछे …....

इस आसरे पर जीवन आगे सरकता रहता है कि जो हम कर रहे हैं उसका

परिणाम ठीक वैसा होगा जैसी हमारी सोच है/धीरे-धीरे हमारा वह कार्य

पूरा हो जाता है लेकिन क्या हमारा अंजादा ठीक निकलता है?क्या हम

उस खुशी को प्राप्त कर पाते हैं जिसकी कल्पना कार्य के प्रारम्भ में की थी?

क्या हमारी तनहाई और गहरी हो जाती है?


कौन देगा इन तमाम प्रश्नों के जबाब?हम करनें वाले हैं,हमें पता है कि हम क्या कर रहे हैं?

हम अंदाजा लगा रहे हैं कि इस कर्म से हमें क्या मिलेगा?लेकिन-------

जब असफलता नज़र आती है तब हम किसी और को उस असफलता के खूंटे से बाध कर हम

स्वयं को बाहर – बाहर से आजाद कर लेते हैं लेकिन हमारे अंदर कोई है जो कोसता रहता है,

यह क्या कर रहे हो?लेकिन हमारा अहंकार अंदर की आवाज को हमारे कानों तक पहुंचनें

नहीं देता/


मनुष्य जीवन भर संग्रह करता रहता है लेकिन जब उसकी श्वास बंद हो जाती है तब उसे घर से बाहर

निकाल कर दरवाजे के ऊपर नीचे जमीन पर लिटा दिया जाता है और इन्तजार किया जाता है

अपनें सभीं सगे-सम्बन्धियों का/जब सब आजाते हैं तब उस देह को उठा कर दाह संस्कार के लिए

ले जाते हैं/क्या कारण है कि लोग सभीं-सगे सम्बन्धियों का इन्तजार करते हैं?

बहुत गहरा कारण है--------

यह वह मौक़ा होता है जब सब यह देख सकते हैं कि उनकी अपनीं-अपनीं औकातें भी

श्वास के साथ जुडी हैं;श्वास निकली और लोग दो कदम पीछे हो लिए/यह परम्परा लोगों को

जगाना चाह्ती है लेकिन हम भी कम नहीं;कौन उस जमीन पर पड़े मुर्दे में स्वयं को देखता है?

कहते हैं …...

बुद्ध दीक्षा देनें के पहले अपनें भिक्षुक को छह माह के लिए स्मशान घाट पर बसाते थे,क्या कारण रहा होगा?कारण सीधा था,जिससे भिक्षुक वहाँ जल रहे मृतकों मीन स्वयं को देख कर

वैराग्यावस्था में आ जाए/संसार के सफर को हम भोग का सफर समझते हैं लेकिन यह सफर

भोग से वैराग्य का होता है;वह जो भोग में समाप्त हो जता है वह सीधे पहुंचता है किसी गर्भ में

और जो भोग को समझ कर योग में पहुंचता है एवं योग में बैराग्य का मजा लेता हुआ अपनें

देह को स्वयं त्यागता है वह सीधे प्रभु में पहुंचता है//


====ओम======







Saturday, May 14, 2011

सब कुछ तो है लेकिन ….....

आज इंसान के पास क्या नहीं है?

लेकिन कल के इंसान से आज का इंसान ज्यादा परेशान है/

कल ठीक ठाक घर बहुत कम लोगों के पास हुआ करते थे पर आज

एक से अधिक घर सभीं सुविधाओं के साथ,लोगों के पास हैं लेकिन

उनका चेहरा ऐसे मुरझाया होता है जैसे डाल से अलग किया गया फूल हो/

एक अच्छा घर है …...

एक गाडी है …...

बच्चे पढ़े लिखे हैं और देश से बाहर रहते हैं ….

लाखों रुपये हर माह आते हैं …..

लेकिन जनाब का चेहरा ऐसे लटका रहता है जैसे पेड़ से टूटी डाल

लटक रही हो,आखिर ऐसा क्यों?

आइये सुनते हैं एक कथा------

बादशाह अपनें मंत्री से पूछा,मंत्रीजी मैं सम्राट हूँ लेकिन फिरभी इतना चिंतित

रहता हूँ और एक मेरा नाइ है रात भर ढोल बजा कर अपनें घर में गाना गाता रहता है,कैसे वह इतना खुस रह पाता है?मंत्रीजी बोले सरकार आप कहें तो उसकी खुशी को बिना कुछ दुःख दिए

उससे छीन लूं/बादशाह बोले,लेकिन यह कैसे संभव हो सकता है?मंत्रीजी बोले,

मैं आप को दिखाता हूँ/

नाइ को रोजाना एक असर्फी हजामत बनानें के लिए राज कोष से मिलती

थी और उस एक असर्फी में वे सब बहुत खुश थे/मंत्री एक राज99असर्फियों का एक थैला

उसके आँगन में गिरवा दिया/सुबह – सुबह वह थैला उसकी पत्नी को मिला और वह तो पागल सी हो गयी और अपने पति को उठाया और बोला,सुनते हो,जल्दी तैयार हो कर राज महल जाओ और

हजामत बना कर सीधे वापिस आना फिर एक बात बताउंगी,आप बहुत खुश होंगे/

इस तरह कई दिन गुजर गए,उसकी खुशियाँ समाप्त हो गयी थी,अब कोई गाना-बजाना

घर में नहीं चल रहा था/अब सब खाना भी खाना कम कर दिए थे क्यों कि पत्नी

बोली,जल्दी-जल्दी असर्फियों को इकठा करके महल खरीदना है/

यह निन्यानबे का चक्कर मनुष्य से उसका आज छीन लेता है/

देखना कहीं हम – आप भी तो उस नाइ की तरह निन्यानबे के चक्कर में

तो नहीं अपनें आज को भूल बैठे हैं?

====ओम=====


Wednesday, May 11, 2011


वह कहाँ नहीं हैं ?




कोई कहता है …..


God dwells in all




कोई कहता है …...


सबका मालिक एक




कोई कहता है …..


अलाह ओ अकबर




कोई कहता है …..


अहम् ब्रह्माष्मि




कोई कहता है …..


ला इलाही इल अलाह




कोई कहता है ….


नासतो विद्यते भावो


नाभावो विद्यते सत: [गीता- 2.16 ]




सबको इतनी होश तो है लेकिन फिर …....


हिंदू का मंदिर अलग है,मुस्लिम का मस्जिद अलग है,गिरिजा घर अलग है,गुरू द्वारा अलग है


यहूदियों का मंदिर अलग है,बुद्धों के मंदिर अलग हैं,जैनिओं के मंदिर अलग हैं,ऐसा क्यों है?




अनगिनत मार्ग हैं,अनगिनत दर्शन हैं,सब कुछ अनगिनत हैं लेकिन सब किस से और किसमें हैं?




गीता कहता है …...


असत्य सत्य की छाया है;छाया सत्य नहीं,चाँद की छाया चाँद नहीं है लेकिन चाँद की छाया से उलटी दिशा में यदि कोई यात्रा करे तो वह एक दिन सत्य चाँद को प्राप्त कर लेगा/


संसार की सभीं सूचनाएं उस से एवं उसमें हैं,जब उनमें वह दिखनें लगता है तब वह उस


ब्यक्ति के लिए निराकार नहीं रह पाता//


संसार का बोध ही परमात्मा को दिखाता है




======ओम=======


Sunday, May 8, 2011

जरा सोचना --------

ऐसा क्यों हुआ ?

ईशा बाद पहली शताब्दी में यूनान से एक खोजी भारत आए और वापिस जा कर उन्होंनें भारत के सम्बन्ध में यह बात लिखी .................
In India I found a race of mortals living upon the earth , but not adhering
to it.........possessing everything but possessed by nothing .
Apolloneous Tyanaeus.
यह समय था महाबीर एवं बुद्ध के प्रभाव का ; महाबीर यूनान के थेल्स से लगभग 25 वर्ष छोटे थे और बुद्ध
जब शरीर छोड़ा तब सुकरात 16-17 वर्ष के थे ।
पश्चिम में थेल्स से अरिसटोटल [from Thales to Aristotle ] तक जो विचारधारा बही उस से
आधुनिक विज्ञान का जन्म हुआ लेकिन भारत में महाबीर - बुद्ध के बाद ऐसा हो न पाया , जबकि बुद्ध , महाबीर , थेल्स और
सुकरात के दर्शनों में कोई मौलि संघर्ष क अंतर न था /
पश्चिम में दर्शन के गर्भ से विज्ञान की उत्पत्ति हुयी घोर संघर्ष के बाद लेकिन भारत में दर्शन को कहानियों में धालानें का काम शुरू हो गया और भारतीय दार्शनिक अपनें - अपनें तर्क की क्षमता को विज्ञान का रूप न दे सके /
गैलीलियो का बक्तब्य , पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ चक्कर काटती रहती है , धर्म गुरुओं की नीद हराम कर दी ;
गैलीलियो को क्या - क्या नहीं सहना पड़ा लेकिन वे अपनीं बात पर अड़े रहे , उनकी बात बाइबिल के
पक्ष मे न थी ,लेकिन तमाम परेशानियों के बाद भी गैलीलियो को कोई हिला न सका और आज का विज्ञान
गलीलियो द्वारा विकशित बीज से तैयार हुआ /
गैलिलियो की मृत्यु [ सन 1642 में हुयी ] और न्यूटन जन्म का वर्ष एक है । सन 1879 में मैक्सवेल की मृत्यु हुई और
आइंस्टाइन का जन्म हुआ , जो काम मैक्सवेल कर रहे थे उसी काम को आगे बढ़ाया आइन्स्टाइन नें / जो काम
गैलीलियो का था वही काम था न्यूटन का और इस प्रकार पश्चिम में विज्ञान की धारा बह निकली
लेकिन भारत में बुद्ध – महाबीर के बाद विज्ञान की धारा न बह सकी , जबकि बहनें को तैयार ही थी /

Max Planck, Erwin Schrodinger, Prof. Einstein सभी नोबल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक गीता तथा
उपनिषद् प्रेमी थे , ये सभीं वैज्ञानिक गीता - उपनिषद से विज्ञान निकाला लेकिन भारत में ऐसा न हो
सका , क्यों की भारत पह्चिम की ओर देखनें का अभ्यासी हो गया और सूर्य पूर्व में निकलता है / भारत में जब घर-घर में तुलसी के रामायण को ढोल बजा - बजा कर गाया जा रहा था तब केप्लर ,
टैको ब्राह्मे तथा गैलिलियो आकाश में तारों को देख कर गणित की रचना कर रहे थे ।
भारत में 10 CCE के बाद भारत भूमि पर भक्ति की ऎसी ऊर्जा बही कि लोग सब कुछ भूल गए और
बाहरी लुटेरों को एक अच्छा मौक़ा मिला यहाँ आकर लूटनें का /
गजनी से ईस्ट इंडिया कम्पनी तक [ 10 CCE से 1947 AD तक ] भारत लगातार गुलाम बना रहा ।
अंगरेजों के समय कुछ लोग जैसे रमन,
सत्येन्द्र नाथ बोस , रामानुजन तथा जगदीश चन्द्र बोस यहाँ अवतरित तो हुए लेकिन पश्चिम कि तरफ वैज्ञानिक
हवा न चल पायी / सत्येन्द्र नाथ बोसे क्या मामूली वैज्ञानिक थे , Bose - Einstein super condensate theory पिछले सौ साल से विज्ञान में शोध का बिषय बनी हुयी है जिसके प्रमुख करता बोस ही थे /
आखिर ऐसा क्यूँ हुआ ?
==== ॐ ========

Wednesday, May 4, 2011


प्राणायाम से प्राण




मनुष्य के तीन तल हें ;देह , मन और ह्रदय जो द्वार हैं जहां से परम में प्रवेश मिलता है/


देह से योगाभ्यास किया जाताहै , मन से ध्यान में उतरना होता है और ह्रदय से परम


भक्ति में डूबा जाता है /




पिछले अंक में बताया गया … .....


आत्मा को साधना की दृष्टि से दो रूपों में देखा जाता है;एक आत्म वह है जो परम सत्य है ,


जो प्रभु का अंश है , जो सबके ह्रदय में स्थित है और वहाँ से मनुष्य को उर्जा देता रहता है /


आत्मा का दूसरा स्वरुप वह है जो द्रष्टा नहीं,जो अकर्ता नहीं वल्कि वह आत्मा है जिसके ऊपर


विकारों का कवर चढा हुआ होता है /




मनुष्य के देह में नौ द्वार हैं जिसमें दस प्रकार की श्वासें चलती रहती हैं जिनमें प्राण वायु


एवं अपान वायु प्रमुख है/वह श्वास जिसको हम नाक से अंदर लेते हैं उसे अपां वायु कहते है


और जिस वायु को हम बाहर फेकते हैं उसे प्राण वायु कहते हैं /


प्राण वायु से ज्ञानेन्द्रियों के कर्म नियंत्रित होते हैं /




प्राण वायु और अपान वायुओं को हर समय सम रखना एक सहज योग है


और सभीं योगों का


प्रारम्भ है/




अपान वायु को प्राण वायु में अर्पित करना रेचक योग कहलाता है और …...


दोनों वायुयों को रोक कर समाधि में उतरनें के योग को कुम्भक योग कहते हैं/


// कुछ और बातें अगले अंक में देखें //