Monday, July 22, 2013

सोच

सोच सोच मनुष्यके जीवनका आधार है ।
सोचसे हम स्वयंको क्षणभरके लिए राजा समझ बैठते हैं और क्षणभरमें अपनेंको रंक समझनें लगते
हैं ,सोचसे कोई बचा नहीं है ।
सोचमें सभीं तैरते हैं लेकिन कोई इसमें दूबनेंकी कोशिश नहीं करता और बिना डूबे मोती पाना संभव नहीं ।
अगर आप मोतीके खोजी हैं तो सोचमें तैरनें की आदतको छोडो और सोच में दूबनेंका अभ्यास करो । सोचमें एक बार दूबनेंका रस मिल जाए तो वह ब्यक्ति सोचसे बाहर आनें पर एक दम भिन्न होगया होता है और समझ जाता है कि सच्चाई कहाँ पर है ।
सोच मनकी उपज है और मन तीन गुणोंकी उर्जासे संचालित है ।
मन कहीं रुकनें नहीं देता और न चैनसे सोच रहित होनें देता ।
मनका काम है भगाए रहना और हम बिना सोचे समझे रात और दिन भाग रहे हैं ।
भोगी आदमी की सोच दो जगह खोजती है ; एक धनके भण्डारको और दूसरीस्त्री प्रसंगको।
योगी सोचसे सोचके परे निकल कर सोचको धन्यबाद देता है और कहता है , सोच तेरा धन्यबाद , यदि तूँ न होती तो हमें ब्रह्म में कौन पहुँचाता ।
योगी सोचसे परे पूर्ण स्थिर प्रज्ञताकी अलमस्तीमें मस्त रहता है और भोगी सोच में उलझा एक नहीं अनेक तत्त्वों जैसे कमाना, क्रोध ,लोभ ,मोह,अहंकार और भय में उलझा हुआ स्वयंसे धीरे -धीरे दूर होता चला जाता है ।
भोगी मरना नहीं चाहता और योगी अपनी मौतका द्रष्टा होता है ।
भोगी मौतसे बचनेंके सारे बंदोबस्त कर रहा है और योगी मौतको एक भौतिक परिवर्तन का अवसर समझता है।
योगी मौत की तैयारी करता है और भोगी मौत की तरफ पीठ करके बेचैनी में रहता है ।
भोगी के माथे का पसीना कभीं नहीं सूखता और योगीके माथे पर कभीं पसीना नहीं आता ।
~~ ॐ ~~