Sunday, October 27, 2013

सत्य जिसमें हम हैं

● देखो और समझो ●
1- देखो संसारके रंगोंको और उनमें समझो उसे जिससे वे हैं ।
2- हम संसारके रंगोंसे इतना तन्मय हो जाते हैं की भूल कर जाते हैं उनके मूल को समझनें में ।
3- सभीं रंग उससे हैं लेकिन वह स्वयं रंग हीन है , यह कितना गहरा विज्ञान है ?
4- वह मायापति है लेकिन स्वयं मायातीत है।
5- सभीं गुणोंके भाव उस से हैं लेकिन वह
गुणातीत - भावातीत है ।
6- समस्याओं से भागनें वाला कामयाब कैसे हो सकता है ?
7- मनुष्य अपनें को ढकता - ढकता नग्न होता जा रहा है और यह उसे और दुखी बनाता जा रहा है । 8- सच्चाई से कबतक भागोगे , वह तुम्हें कहीं चैन से श्वास न लेनें देगी ।
9- तुम जैसे हो वैसे रहो - तन और मन से , लोग तुमको अस्वीकार करेंगे लेकिन जो सत्य को समझते हैं वे तुम्हारे प्रेमी होंगे और तुम प्रसन्न रह सकोगे । 10- तुम यह समझो कि तुम्हारी खोज सत्य की है और तुम सत्य से भाग रहे हो फिर तुम खुश कैसे रह सकते हो ?
~~~ ॐ ~~~

Friday, October 25, 2013

● प्यार ●

● एक नज़र - 3 ●
1- प्रेम कोई बंधन नहीं , प्रेम सभीं बन्धनों से मुक्त करता है ।
2- प्रेमकी कोई तश्वीर नहीं , वह सभीं तश्वीरों में है ।
3- प्रेमको गाया नहीं जा सकता लेकिन सभीं गाना चाहते हैं
4- प्रेम रसमें डूबा समयातीतमें होता है ।
5- प्रेममें इन्तजारके लिए कोई जगह नहीं ।
6- प्रेम उर्जाका जब संचार होता है तब मन निर्विकल्प आयाममें होता है ।
7- ऐसा कोई जड़ - चेतन नहीं जिसमें प्यारका बीज न हो और सभीं का मूल प्यार ही है ।
8- प्यार उर्जासे परिपूर्ण आँखें जो भी दिखती हैं वह परमात्मा ही होता है ।
9- प्यारके दीवाने कोई तमन्ना नहीं रखते ।
10- प्यार कुछ मांगता नहीं , पा लेता है सब ।
11- प्यारमें मैं नहीं होता , तूँ ही तूँ होता है ।
~~~ ॐ ~~~

Tuesday, October 22, 2013

ध्यानकी राह

● देखो और समझो ●
1- जो है उसे क्या ढूढ़ रहे , उसे पहचानो और उसकी पहचान होती है ध्यान से ।
2- ध्यान क्रिया नहीं है , क्रियामें ध्यान मिल सकता है ।
3- मन - बुद्धि तंत्रकी उर्जा जब निर्विकल्प होती है तब जो अनुभूति होती है वह परम सत्य की अनुभूति होती है ।
4- जब संदेह उठना बंद हो जाता है और श्रद्धा
तन - मनसे टपकनें लगती है तब वह ब्यक्ति ध्यान में होता है ।
5- साफ़ मन वाला मृत्युके आइनेंमें प्रभुकी धुधली तस्वीर देखता है ।
6- भाषा , भाव ब्यक्तका माध्यम है ।
7- शब्दसे दृश्य - द्रष्टाको ब्यक्त किया जाता है ।
8- मौतका भय जीवनके रस से दूर रखता है ।
9- वह जो अपनें जीवनको समझता है , प्रभुसे भयभीत न हो कर उनसे मित्रता स्थापित कर
लेता है ।
10- भय माध्यमसे प्रभुसे जुड़ना अति आसान पर प्रभुमें बसना अति कठिन ।
~~~ ॐ ~~~

Saturday, October 19, 2013

परम मार्ग

● साधनाके मूल मन्त्र ● 
 1- भोगतत्वोंके सम्मोहनसे अप्रभावित मन ब्रह्म -जीवात्मा एकत्वकी अनुभूतिके माध्यम से ब्रह्म वित् बनाता है ।
 2- वैदिक कर्म दों प्रकरके हैं : एक प्रवित्ति परक और दूसरा निबृत्ति परक कहलाता है ।प्रवित्तिपरकका केंद्र भोग होता है और निबृत्तिपरकका केंद्र मोक्ष । 
3- माया मोहित ब्यक्ति असुर कहलाता है । 
4- माया मोहितकी पीठ प्रभुकी ओर होती है और आँखें भोग पर टिकी होती हैं । 
5- संकल्प धारी योगी नहीं हो सकता ।
 6- संकल्पका न होना काममुक्त बनाता है । 
7- काममुक्त ब्रह्मवित् होता है ।
 8- ब्रह्मवित्  का बसेरा  प्रभुमें होता है । 
9- ब्रह्मवित् और माया सम्मोहितकी आँखें कभीं एक दुसरे से नहीं मिलती । 
10- दुःख संयोग वियोगः योगः - गीता 
 <> ऊपरके सूत्र मूलतः गीता आधारित हैं <> 
~~~ ॐ ~~~

Saturday, October 12, 2013

पग - पग पर

पग - पग पर
01- किसी को देखो , देखनें से आप का मार्ग सुगम हो सकता है लेकिन इतना और ऐसे न देखो की वह आप के दुःख का कारण बन जाए । यहाँ सबके मार्ग अलग - अलग हैं ; आप जैसा वह नहीं और आप वैसे जैसा नहीं हो सकते , बश इतनी सी बात पकडे रहो । 2- पग - पग पर सोचते रहो कि क्या तुम्हारा अगला कदम उधर ही जा रहा है जिधर तुम्हें अंततः जाना ही है , यदि नहीं टी अब भी वक़्त है तुम अपनें अगले कदम की स्थिति जो तय कर सकते हो ।
3- जरा सोचना - जिसके स्पर्शसे यह जगत चेतन मय है उसे हम चेतनाके एक कण देनें की भी तो सोच नहीं रखते ।
4- जीवन भर हम मुट्ठी खोलते समय डरते हैं कि इसमें जो हमनें इकट्ठे किये हैं वह कहीं सरक न जाए पर अंत समयमें यह मुट्ठी स्वतः खुल जाती है और खाली होती है , देखनें वालों ! सोचना , कल आप की भी मुट्ठी स्वतः खुलनें वाली है , आप इस भ्रमित जीवनसे निकल कर यथार्थ जीवन को अपना सकते , अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा ।
5- अपनें माँ - पितासे नज़र छिपा कर अपना जोड़ा बनानेंका यह प्रयाश क्या आपको यह नहीं इशारा करता कि यह तुम्हारा कृत्य तुमको भी माँ / पिता बनानें जा रहा हैं ? जैसे तुम अपनें माँ / पिताको धोखा दे रहे हो आज से ठीक 15 साल बाद आप की भी औलाद आपको धोखा दे सकती है ।
6- जैसा बीज और धरती होगी उसकी फसल भी वैसी ही होती है , यदि अन्य बातें सामान्य हों तब । 7- यह संसार लेने - देने का एक परम निर्मित क्षेत्र है जहाँ हमसब लेन - देन कर रहे हैं लेकिन जरा
सोचना ,  हम उस परमको क्या दे रहे हैं जबकि हमसबके पास जो भी है वह उसीका दिया हुआ है ?
8- जरा रुकना ! क्या कर रहे हो ? आप इस फूलको क्यों तोड़ रहे हो ? यह बिचारा तो हम सबको खुशबूसे भरता रहता है और हम इसे मौत देते हैं , यह कैसा इन्साफ है ?
9 - फैला लो अपनी पंख जितना फैलाना चाहते हो लेकिन इतनी बात जरुर अपनीं स्मृतिमें बनाए रखना कि जब वह घडी आएगी तेरे पंख स्वतः बंद होजायेंगे।
10 - मंदिरमें जो पहुँच रहे हैं उनमें सुखी कौन हैं और दुखी कौन हैं साफ़ साफ़ नज़र आता है लेकिन कोई ऐसा नज़र नहीं आता जो न सुखी हो न दुखी - सम भावमें हो ।
~~ ॐ ~~

Monday, October 7, 2013

ध्यान की आँखे

● ध्यान की आँखे ●
1- मनुष्य सोच कर और पशु सूंघ कर निर्णय लेते
हैं ।
2- स्थावरों में भोजन संचार नीचे से ऊपरकी ओर होता है ।
3- मनुष्यमें भोजन संचार ऊपरसे नीचे की ओर होता है ।
4- प्रकृति में जो सूचनाएं हैं वे सभी मनुष्य आश्रित हैं और मनुष्य प्रकृति आश्रित है। लेकिन मनुष्य इस बातको भूल रहा है ।
5- आप मुझे नीचा कर सकते हैं लेकिन कोई है जरुर जिसकी नज़र आप पर है , वह एक दिन आपको भी नीचे कर देगा ।
6- भाग लो तबतक जबतक श्वासे चल रही हैं , लेकिन इतनी बात अपनी सोच में रखना कि मिलेगा यहाँ वही जो प्रकृति देना चाहती है । हम दौड़ रहे हैं कुछ और पानें हेतु लेकिन इस लालच की दौड़ में कुछ हर पल खो भी रहे हैं जिसके प्रति हम बेहोशी में हैं। इतना तो सोचो ,जहांसे हम आये हैं ( प्रभु ) वहाँ किस चीज की कमी थी ? जब वहाँ सब है फिर यहाँ आयेही क्यों ? इस भिखारी संसार में । यहाँ बार - बार हमें हमारी भ्रमित चाह लाती रहती है , जिसे हम समझना नहीं चाहते और जिस दिन समझ गए , आनें - जानें से मुक्त हो जायेंगे ।
7- संसारमें पूर्णरूपसे डूबे ब्यक्तिकी आँखें सत्य को नहीं पकड़ पाती ।
8 - परम भोग ध्यानका प्रसाद है और इन्द्रिय भोग ध्यान की रुकावट ।
9- काम , कामना , क्रोध , लोभ और अहंकार में से किसी एक की समझ सबकी समझ होती है क्यों की ये तत्त्व राजस गुणके हैं ।
10- आलस्य , लोभ , अधिक निद्रा और मोह में से किसी एक की समझ सबकी समझ है क्योंकि ये तत्त्व तामस गुणके हैं ।
~~~ ॐ~~~