Sunday, August 10, 2014

जीवन सार

1- जैसे - जैसे उम्र बढ़ती जाती है जिस्म - बुद्धि कमजोर होती जाती है और मन बढ़ता जाता है ।
2- जैसे - जैसे उम्र बढती जाती है मोह ,ममता ,कामना ,क्रोध ,लोभ और अहँकार सघन एवं तीब्र होते जाते हैं और मंदिर जाना , कथा सुनना आदि में रूचि बढ़ी सी दिखनें लगती है ।
3- अहंकार अपना रंग गिरगिट से भी अधिक तीब्र गति से बदलता है और मोह के अन्दर छिप कर रहनें वाला अहंकार घी जैसा सरकनें वाला होता है ।
4- मोह में अहंकार सिकुड़ कर अन्दर केंद्र पर जा बैठता है और वक़्त का इन्तजार करता है । जब अच्छे दिन आजाते हैं वह तुरंत फ़ैल जाता है और केंद्र से परिधि पर डेरा जमा लेता है ।
5- कामना में अहँकार परिधि पर होता है पर अपनें रंगको ऐसे छिपा कर रखता है कि पहचानना बहुत कठिन होता है ,लेकिन ध्यानी इसे पहचानता है ।
6- परिधि पर स्थित कामनाका अहँकार उस समय लाल रंग में बदल जाता है जब कामना टूटती सी दिखती है ।
7- बसुधैव कुटुम्बकम् का नारा सभीं भारतीय लगाते हैं और यह भी कहते नहीं थकते कि हम , हमारी भाषा , हमारा देश , हमारा इतिहास और हमारी सोच दुनिया में सर्बोपरी है ।
8- गाय की पूजा केवल भारत में होती है ,गाय में सभीं देवता बसते हैं , ऐसी धारणा हम भारतीयों की है लेकिन गौओंके अनाथ आश्रण भी केवल भारत में मिलते हैं । गौओं को बस्ती से बाहर निकालनें वाले कौन हैं ? ज़रा अपनें चारो तरफ नज़र डालकर देखना तो सही ।
9- पत्थर ,पेड़ ,पहाड़ और नदियों की पूजा हम भारतीय करते हैं , सभीं हिन्दू तीर्थ पहाडों पर या नदियों के तट पर हैं फिर हम पहाड़ों और नदियों की पवित्रता की चिंता क्यों नहीं करते ? क्यों इनको बेमौत मार रहे हैं ?
10- पिछले 15-20 सालों नें एक कला का प्यारा फैलाव हुआ है वह कला क्या है ? प्रश्नका उत्तर प्रश्न से देना , हैं न मजे की कला और हम सब सुनकर मस्त रहते हैं ।
~~ हरे राम ~~

Sunday, August 3, 2014

पुरानी आँख और नया आयाम

पुरानी आँख और नया आयाम ( भाग - 1 )
● लाख कोशिश करलें पर असफलता और हमारा रिश्ता टूट नहीं पाता ,क्या कारण हो सकता है ?
°° पुरानी आँख और नया आयाम ; यह समीकरण हमारी असफलताका एक मजबूत कारण है ।
^^ दूसरा कारण है कि हम अपनें को इतना कमजोर बना रखे हैं कि अपनें पर इतबार कम करते हैं और औरों पर अधिक ।आइये ! अब देखते हैं इन पर आधारित कुछ पहलुओं को :---
1- नया आयाम -पुरानी आँख समीकरण क्या है ?
* वर्तमान ( present ) का अर्थ है नया , जीवंत । वर्तमान में हमारा जीवन है और हमारा मन भूत काल की घटनाओं में समय गुजारता है इस परिस्थिति में हमारा वर्तमान बेहोशी में सरक रहा होता है और जहाँ बेहोशी है वहाँ असफलता तो होगी ही । आपको ताजुब होगा यह जानकर कि हमारी क्रियाएं मन से नियंत्रित हैं और मनका स्वाभाव है भूतकाल की घटनाओं में भ्रमण करते रहना अर्थात वर्तमान से दूर रहना फिर ऐसी परिस्थिति में जो हमसे हो रहा है , उसका परिणाम क्या हो सकता है ?
* मन बिषयों में ऐसे भ्रमण करता है जैसे भौरा फूलों में लेकिन भौरा बाहरी आकर्षण में न उलझ कर सार को चूसता है और मन बाहरी आकर्षण से आगे सार की ओर रुख भी नहीं कर पाता ।भौर सत्य की खोज में कहाँ कहाँ नहीं पहुँचता ; एक फूल पर भी मडराता है और गन्दगी के ढेर पर भी और दोनों जगहों से सार को पकड़ने में सफल होता है और मन ?
* नया आयाम ( New Frame of Action ) :मनुष्यका हर पल उसके लिए नया पल है जो चाहता है नयी सोच पर मनुष्य का मन इस नए कैनवास पर पुरानी तस्बीर बना देता। है और ज्यों ही तस्बीर तैयार होती है , मन में उसके प्रति ऊब आजाती है और वह पुनः चल पड़ता है , नए की तलास पर लेकिन अपनें स्वभाव के कारण हर बार धोखा खाता हैं।
* जिस समय नए आयाम को नयी आँखे देखती है , उस घडी सत्य कहीं दूर नहीं होता , वही आयाम सत्य का आयाम होता है और तब :---
● मन की दौड़ रुक जाती है ....
● मन उस आयाम में रम जाता है ....
● मन गुण उर्जा से बनें पिजड़े से मुक्त हो जाता है ... और :---
स्थिर मन सत्य को ढूढ़ता नहीं ,वह स्वयं प्रज्ञा में रूपांतरित होकर सत्य हो गया होता है ।
और :---
* ऐसे मन वाले को गीता ब्रह्म् वित् कहता है । ~~~ ॐ ~~~